मूर्ख की तलाश

मुझे कई दिनों से मूर्ख की तलाश है मगर आजतक कोई मूर्ख मिल नहीं सका। हरकोई सयाना, समझदार और विद्वान हैं। मैंने कईयों से पूछा, मगर उन्होंने दूसरों का पता बताया।

मैं उस हर आदमी से मिला जहां संभावनाएं दिखती थी फिर भी खाली हाथ!

अब मुझे यकीन हुआ है कि दुनिया में कुछ भी

मिल सकता है पर मूर्ख आदमी नहीं। यहां हरकोई दूसरे को मूर्ख कह रहा है, साबित करने में तूला हुआ है। उसे अपनी समझ पर जरा भी शक नहीं। मैं,कभी गलत होता ही नहीं।लोग लोगों के बारे में कहते हैं कि लोग मूर्ख हैं।

मैं उन लोगों की तलाश में निकला,उन लोगों ने मुझे फिर इन लोगों के पास भेज दिया।

जबकि हरकोई बात-बात पर किसी और को मूर्ख

कह रहा है, फिर वे मूर्ख कहां छिपाएं गए? मुझे

उनकी तलाश है।

इतनी जनसंख्या में एक भी मूर्ख न मिलना वैसे

देश का गौरव है। मैं गौरवान्वित महसूस कर रहा

हूं। लेकिन मैं भी हार माननेवाला नहीं था, मैंने

दासबोध से मूर्खों के लक्षण पढ़ें।मनिषीयों के

उद्धरण पढ़ें। चाणक्य से लेकर रामदेव बाबा तक सबको पढ़ा और फिर निकला ,मूर्ख की तलाश में।

एक घर से सुना , पत्नी पति को और

पति पत्नी को मूर्ख कह रहे थे और बेटा दोनों

को मूर्ख कहकर बाहर निकल गया। मैं जब इन

तीनों से मिला और अपनी तलाश के बारे में बताया तो तीनों ने बड़ी समझदारी से एकता दिखाते हुए मेरी पिटाई की। मैं वेदना से कराहता हुआ आगे बढ़ा।

एक नेता सभा को संबोधित कर रहे थे। बड़ी भीड़ थी।सोचा, यहां एकाध मिल सकता है। मैंने कईयों से पूछताछ की मगर सबने यही कहा, आगे बढ़ो। भिखारी से बदतर मेरा हाल हो रहा था।सभा समाप्त होने पर मैं

उस नेता से मिला और समस्या बताई तो उस नेता ने विरोधी दल का पता बताया। जबकि उन्होंने ही मुझे इसके पास भेजा था।

मैंने सोचा देश के बड़े-बड़े साहित्यकारों से, कवियों से मिलते हैं,जो अपनी कलम से मूर्खता

पर लिखते हैं मगर वहां भी मेरी घोर निराशा हुई। उन्होंने कहा ,हम मूर्खों से वास्ता नहीं रखते इसलिए हम उन्हें नहीं जानते।

फिर मैं शराबखाने में गया।सुना था,जो शराब पीते हैं वे मूर्ख हैं ,मगर वहां जाकर पता चला कि

शराबी ही सबसे समझदार है।उनकी गपशप से

पता चला कि असली प्रतिभा मयखाने में दम

तोड़ रही है। मैंने एक शराबी से बात करनी चाही

तो दर्जनों शराबीयों ने उसका सटीक जवाब दिया।आदमी को होश में लाने के लिए शराब से बढ़कर कोई चीज नहीं है,शराब पीकर तो मूर्ख भी उपदेशक बन जाता है। यहां भी घोर निराशा हुई।

अब मैं थक चुका था,हार चुका था। मुझे लगा कि

मूर्ख की तलाश बाहर क्यों करुं?अपने गिरेबान में झांक कर तो देखूं।आश्चर्य,कबीरा का दोहा सार्थक हुआ।बूरा जो देखन मैं गया के बजाय मूर्ख जो देखन मैं गया.......।

               

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