जैन धर्म का महत्वपूर्ण पर्व: पर्युषण पर्व
जैन धर्म का महत्वपूर्ण पर्व: पर्युषण पर्व
नमस्कार दोस्तों! आज के इस ब्लॉग में हम बात करेंगे जैन धर्म के एक प्रमुख पर्व के बारे में, जिसका नाम है पर्युषण पर्व। यह पर्व जैन समुदाय के लिए बहुत खास होता है, क्योंकि इसमें आत्मा की शुद्धि, आत्म-चिंतन और धर्म के मूल सिद्धांतों का पालन किया जाता है। पर्युषण पर्व श्रावण या भाद्रपद महीने में मनाया जाता है और यह श्वेतांबर और दिगंबर जैनों के लिए थोड़ा अलग-अलग तरीके से होता है। श्वेतांबर जैनों के लिए यह 8 दिनों का होता है, जबकि दिगंबर जैनों के लिए यह 10 दिनों का दसलक्षण पर्व कहलाता है।
इस पर्व का मुख्य उद्देश्य है कि हम अपने जीवन में संचित पापों से मुक्ति पाएं और अच्छे कर्मों की ओर बढ़ें। लोग उपवास रखते हैं, जैन ग्रंथों का पाठ करते हैं, ध्यान करते हैं और एक-दूसरे से क्षमा मांगते हैं। खासकर सम्वत्सरी के दिन, जो पर्युषण का आखिरी दिन होता है, लोग "मिच्छामी दुक्कड़म" कहकर सभी से माफी मांगते हैं, जिसका मतलब है "अगर मैंने कोई गलती की हो तो मुझे माफ कर दो"।
अब, पर्युषण पर्व में जैन धर्म के दस उत्तम धर्मों (उत्तम धार्मिक गुणों) पर विशेष जोर दिया जाता है। ये दस धर्म दिगंबर परंपरा में दसलक्षण के रूप में मनाए जाते हैं, लेकिन श्वेतांबर जैन भी इन्हें महत्व देते हैं। मैं इन हर धर्म को सरल भाषा में समझाऊंगा, ताकि कोई भी व्यक्ति आसानी से समझ सके। ये धर्म हमारे रोजमर्रा के जीवन में अपनाने लायक हैं और हमें बेहतर इंसान बनाते हैं।
1. उत्तम क्षमा (सर्वोच्च क्षमा)
यह धर्म हमें सिखाता है कि हमें दूसरों की गलतियों को माफ करना चाहिए। जैसे अगर कोई हमें चोट पहुंचाए या गुस्सा दिलाए, तो बदला लेने की बजाय दिल से माफ कर दें। इससे हमारा मन शांत रहता है और नफरत कम होती है। उदाहरण: अगर कोई दोस्त गलती से आपका सामान तोड़ दे, तो उसे माफ करके रिश्ता मजबूत रखें।
2. उत्तम मार्दव (सर्वोच्च नम्रता)
नम्रता का मतलब है घमंड छोड़कर सबके साथ विनम्र रहना। अमीर हो या गरीब, सबको सम्मान दें। यह हमें सिखाता है कि अहंकार से बचें, क्योंकि अहंकार हमें अकेला कर देता है। उदाहरण: बॉस या टीचर के सामने घमंड न दिखाएं, बल्कि politely बात करें।
3. उत्तम आर्जव (सर्वोच्च सरलता या सीधापन)
यह धर्म कहता है कि हमें झूठी चालाकी या धोखे से दूर रहना चाहिए। जीवन में सीधा और सरल रहें, मन में जो है वही बोलें। इससे लोग हम पर भरोसा करते हैं। उदाहरण: व्यापार में ग्राहक से झूठ न बोलें, सच्ची जानकारी दें।
4. उत्तम शौच (सर्वोच्च पवित्रता)
पवित्रता सिर्फ शरीर की नहीं, बल्कि मन की भी। हमें लालच, ईर्ष्या जैसी बुरी भावनाओं से दूर रहना चाहिए। यह हमें सिखाता है कि साफ-सुथरा जीवन जिएं। उदाहरण: किसी की सफलता पर जलन न करें, बल्कि खुश हों।
5. उत्तम सत्य (सर्वोच्च सत्यवादिता)
सत्य बोलना सबसे बड़ा धर्म है। झूठ बोलकर कभी फायदा नहीं होता, बल्कि नुकसान होता है। यह हमें सिखाता है कि हर हाल में सच बोलें। उदाहरण: परीक्षा में नकल न करें, अपनी मेहनत से पास हों।
6. उत्तम संयम (सर्वोच्च संयम या आत्म-नियंत्रण)
संयम का मतलब है अपनी इंद्रियों पर काबू रखना। ज्यादा खाना, गुस्सा करना या अनावश्यक चीजों पर खर्च करना रोकें। इससे हमारा जीवन संतुलित रहता है। उदाहरण: डाइट कंट्रोल करके स्वस्थ रहें।
7. उत्तम तप (सर्वोच्च तपस्या)
तपस्या मतलब कष्ट सहना, जैसे उपवास रखना या सादा जीवन जीना। यह हमें मजबूत बनाता है और आत्मा को शुद्ध करता है। पर्युषण में लोग फास्टिंग करते हैं, यही तप है। उदाहरण: गर्मी में बिना AC के रहकर खुद को मजबूत बनाएं।
8. उत्तम त्याग (सर्वोच्च त्याग)
त्याग का मतलब है अनावश्यक चीजों को छोड़ना। ज्यादा संपत्ति या सुखों का मोह न रखें। इससे हम स्वतंत्र महसूस करते हैं। उदाहरण: पुरानी चीजें दान करके जगह खाली करें।
9. उत्तम अकिंचन्य (सर्वोच्च अपरिग्रह या मोह-मुक्ति)
यह धर्म कहता है कि किसी भी चीज से ज्यादा लगाव न रखें, क्योंकि सब कुछ अस्थायी है। परिवार, धन या शरीर से मोह छोड़ें। इससे दुख कम होता है। उदाहरण: अगर कोई चीज खो जाए, तो ज्यादा दुखी न हों।
10. उत्तम ब्रह्मचर्य (सर्वोच्च ब्रह्मचर्य)
ब्रह्मचर्य मतलब शारीरिक और मानसिक पवित्रता रखना, खासकर काम-वासना से दूर रहना। यह हमें ऊर्जा बचाने और फोकस करने में मदद करता है। उदाहरण: युवावस्था में पढ़ाई पर ध्यान दें, distractions से बचें।
ये दस धर्म पर्युषण पर्व का आधार हैं। इस पर्व में जैन लोग इनका पालन करके अपनी आत्मा को ऊंचा उठाते हैं। अगर आप भी इन गुणों को अपनाएं, तो जीवन में शांति और खुशी मिलेगी। पर्युषण हमें याद दिलाता है कि धर्म सिर्फ पूजा-पाठ नहीं, बल्कि अच्छा इंसान बनना है।
अगर आपको यह ब्लॉग पसंद आया, तो कमेंट में बताएं। जय जिनेंद्र!
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